लेकिन भूल से भी भूल नही पाया...
जितना मिटाना चाहा उसे यादों से
वो उतना बेशुमार याद आया...
दूर जाने के डर से
रोम रोम में कंपकपी है...
जितना मिटाना चाहा दिल से उसकी तस्वीर को
वो उतनी ही गहरी छपी है...
उसकी छुहन को
तरसते है मेरे शरीर के हर हिस्से...
आजकल तो घर कि दीवारें भी
सुनाती हैं उसके किस्से...
उसके बिना जिंदगी में
अजीब सा खालीपन है...
मेरा जर्रा जर्रा उदास
और विचलित मेरा मन है...
खुद में खातिर
कैसे तुझे जख्म दूंगा...
तु खुश रह बस
मै जीवन भर मोम सा पिघल लूंगा...
@ Kavi mr Ravi
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