हंसी तो फंसी हास्य कविता
एक दिन एक वार....
जा रहा था मैं बाजार...
रस्ते रस्ते में चला.....
सामने से आ रही थी एक बला.....
देखकर वो लड़की ...
मेरे दिल मे बिजली कड़की ...
फिर चला मैं रस्ते रस्ते ...
उसने देखा मुझे हंसते हंसते...
सिर मेरा चकराया....
उसके सिवा कुछ ना नज़र आया....
कुछ न देखा कुछ न सुझा
सीधा जाकर उससे टकराया.....
वो मेरे ऊपर मैं था उसके नीचे...
बाहों में थी वो आंखे मीचे....
उसने आंखे खोली....
खड़ी होकर मुझसे बोली ..
तूने इतना नही देखा ....
सामने से आ रही है रेखा....
बात को मन में तोला ...
फिर जाकर मैं बोला....
सुन देख....
Its not my mistake.....
तूने मुझको मेने तुझको देखा .....
हंसकर तीर नज़र का फेंका.....
देखकर तेरी ये अदा.....
दिल हुआ मेरा फिदा.....
बोली आँखे करके मोटी गोली समान ....
सुन मेरी बात खोल के तेरे कान.....
शायद तुमने सुना नही ....
हँसना कोई गुनाह नही.....
हम लड़के कुछ नही जानते ....
बस एक नियम हैं मानते.....
अगर लड़की लड़के को देख के हंसी ....
तो समझो वो प्यार में फंसी.....
फंसना मुझे नही आता.....
जूत खायेगा या यहां से है जाता....
ये प्यार व्यार का चक्कर छोड़....
वरना रोयेगा तु अपना सिर फोड़....
दे कर लेक्चर चली वो
अपनी कमर मटकाकर...
मन को मेरे भटकाकर...
सांसे मेरी अटकाकर...
निकले फिर एक दिन घूमने को वही गली....
शायद मिल जाये वही हसीन कली...
तभी देखा वो आ रही थी दूर से ....
लक्षण थे उसके हूर से...
जैसे ही उसने मुझको देखा...
मेने कहा हाई रेखा....
तभी वो मुस्कुराई
मेरी ओर...
लेकिन बढ़ गई आगे
करके मुझे ignore...
देखकर उसका ऐसा रिएक्शन
सोचा होंगे अवश्य ही घाव....
सब्जी वाले के पास जाकर
उसने पूछ डाला टमाटर का भाव....
हम भी चल दिए पास उसके....
और पुछ डाला केले का भाव वहाँ घुसके...
तभी एक लड़का वहाँ आया
ओर करने लगे दोनो गहरी चेटिंग.....
मैने मन में सोच वाह रे रवि
शायद हो गई दोनो की सेटिंग....
की थोड़ी हिम्मत
और उस लड़के को बुलाया....
मुझे देख वो तुरंत साइड
में आया....
मैं बोला जो कली तू तोड़ने जा रहा है
वो है मेरी जान..
चल फुट यहाँ से
शायद तू है इस बात से अनजान....
सुनते ही मेरी बात उसने अपना आपा खो दिया...
और बिना डिटर्जेंट के ही मुझे धो दिया....
मुक्के से चेहरे पर किया उसने जोर का वार ...
आँखे हुई टमाटर हौद हुआ मुँह नाक हो गई पार...
नाक हो गई पार होंठ भी छिल गए ....
कल तक थे जो वज्र समान दाँत वो भी हिल गए....
उसने मुझे बुरी तरह
पेल दिया....
गुस्साई बीवी रोटी बेलती है
वैसे बेल दिया.....
जिसको समझ रहे थे हम उसका सँइया....
बाद में पता चला वो था उसका भइया....
अब कभी सपनो में भी नही होती रेखा से भेंट....
दाँतो का ये हाल की रगड न सके कॉलगेट....
उस अत्याचारी ने मुझे थोड़ा भी नही बक्शा....
2 महीने बाद ठीक हुआ मेरे चेहरे का नक्शा....
ठीक होने पर लाइफ वैसे ही चली....
फिर गए घूमने को वही गली....
तभी हमारी नज़रों ने कमाल दिखाया....
फिर से आँखों के सामने एक नया मॉडल आया....
इस बार खुल गया मेरी किस्मत का गेट...
और ये मॉडल हो गया मुझसे सेट...
i wrote this poem when i was in 11th class in 2009 in
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