मैं तेरा हूं और तू मेरी है
ये सारी दुनियां है जानती...
फिर भी क्यों शर्माए गौरी
आ छत पे मिलकर मनाएं मकर संक्रांति...
आ साथ मेरे छत पे
खुशियों के पल बांटे...
मैं उड़ाऊं पतंग
और तू चरखी डांटे...
खाएं तिल के लड्डू
गर्मी लाए चाय पीकर...
झूम ले गौरी...
लगा रखे है तेरे लिए स्पीकर...
तू लगाए आसमान में उड़ती
पतंग को कोमल हाथों से ठुमकी...
मैं निहारू तुझे और
बेकरार करे मुझे तेरे कानो की झुमकी...
तू बने मेरी धुन
मैं बन जाऊं साज...
कानो को भाए
तेरे मुंह से निकली
"वो काटा" की आवाज...
तू पेच लड़ाए पतंगों से...
और मैं लड़ाऊं नैनो से...
आजा साथ में करेंगे मस्ती...
कह देना अपने भाई बहनों से...
कृष्णा का सद्दा और
अब्बास भाई का मांझा...
उड़ाएं पतंग बनकर
हीर और रांझा...
काटे जब पेच दिल के
तब आए दिल को शांति...
आजा गौरी छत पे
मिलकर मनाएं मकर संक्रांति...
@Ravi jangid (kavi Mr Ravi)
Comments
Post a Comment