माँग का सिंदूर(5)
प्रेयर में नवीन की निग़ाहें बस उस प्रेम नगर की प्रेमिका पर ही टिकी रहती थी ।बार बार मौका देख वो विदुषी का दीदार कर लेता था । बदले में विदुषी भी मुस्कान तोहफे में नवीन को दे देती थी।
प्रेयर के बाद जब दोनों क्लास की ओर जा रहे थे तब उनकी ही क्लास का एक लड़का रोहन और उसके फ्रेंड जो बहुत ही आवारा किस्म के थे बोल पड़े-
"हाय ...हाय
कहर ही ढा दिया"
"क्या तुमको शर्म नही आती" नवीन के सीने आग धधक उठी थी मानो।
"नही आती जा ...तू कर क्या लेगा ? साले ..."
रोहन भी पीछे नही रहा।
"अबे ओए..." नवीन गुस्से से आग बबूला हो उठा और आगे बढ़ा।
लेकिन विदुषी ने नवीन का हाथ पकड़ लिया और-
"नही नवीन ...आप चलिए यहाँ से प्लीज"
"साले लड़की के चमचे" रोहन ओर उसके दोस्त बोल पड़े।
ये सुनते ही विदुषी ने नवीन का हाथ छोड़ दिया।
मानो उसे भी ये बात दिल पर चोट कर गयी हो।
अब क्या था नवीन को भी जोश आ गया ।
नवीन तेजी से दौड़ा और रोहन के थोबड़े पर जोरदार लात चिपका दी ।
ये देख एक लड़का और आगे आया उसने नवीन पर हाथ उठाया तो नवीन संभला और उस पर ही पंच का प्रहार कर दिया ।
इतने में ही प्रिंसिपल आ गए और उन्होंने नवीन को शांत करवाया ।
अन्य सभी बच्चों ने नवीन का पक्ष लिया ।
प्रिंसिपल ने उन लड़कों को पूरे दिन क्लास से बाहर रहने की सजा दी ।
विदुषी अपनी आशिक की जीत पर मन ही मन बहुत खुश हो रही थी।
12:30 पर छुट्टी हो गयी
और
"नवीन आज जरूर आना कही भूल जाओ आप"
विदुषी ने कहा।
"हाँ जान मुझे याद है । आज आप मुझे अपने सास- ससुर से मिलवाओगे"
नवीन हँसते हुए बोला।
"नवीन....आप भी ना । क्या करे हम आपका । "
विदुषी प्यारी स्माइल चेहरे पर सजाते हुए बोली।
और दोनों ना चाहकर भी अपने अपने रास्ते चल पड़े।
घर पर विजय भी विदुषी के खयालों में डूबा रहता था।
12th होने के कारण वो बहुत मजबूर था ।
वो चाह कर भी विदुषी के लिए समय नही निकाल सकता था।
उधर नवीन अपने कपड़े प्रेस करने में लगा था। प्रेस करने के बाद वो बन- ठन कर 4:30 पर प्रेम नगर की ओर चला गया।
प्रेम नगर में उसी जगह नवीन पहुँच गया।लेकिन उसे दूर -दूर तक विदुषी नज़र नही आ रही थी।
उसने 15 मिनट वेट किया।और उसके बाद उसकी निगाहें अचानक स्थिर हो गई।
सामने प्रेम नगर की राजकुमारी जो आगयी थी।
"सॉरी... नवीन हम लेट हो गए वो क्या है कि..."
विदुषी ने माफी मांगते हुए कहा।
कोई बात नही जान... " नवीन ने हंसते हुए कहा।
"अब चलो...." विदुषी ने जान कहने पर जैसे एतराज जताया हो।
"ओके जा....ओह सॉरी ..विदुषी"
नवीन एक बार फिर मुस्कुरा उठा।
इस तरह प्यार भरी बातें करते हुए वो विदुषी के घर पहुंच गए।
"पापा देखिए कौंन आया है
.............................नवीन"
विदुषी ने पापा की और नवीन को ले जाते हुए कहा।
नवीन ने तुरन्त आगे बढ़ते हुए विदुषी के पिता के चरण सपर्श किये।
उसके ऐसे आचरण से विदुषी के पापा बहुत प्रभावित हुए।
"बेठो नवीन बेटे " विदुषी के पिता ने कहा।
इतने में विदुषी की मम्मी चाय व नास्ता लेकर आई।
नवीन ने तुरन्त सोफे से उठकर मम्मी के चरण स्पर्श किये।
"खुश रहो बेटे...." विदुषी की माँ के मुख से नवीन के लिए आशीर्वाद स्वरूप ये शब्द निकले।
"मुझे ऐसा लगता है विदुषी आपने अंकल आंटी को मेरे आने की खबर पहले ही देदी थी।"
नवीन ने विदुषी की ओर देखते हुए कहा।
"हाँ बेटे...
इसने आज स्कूल वाली बात भी हमे बताई।
पापा ने कहा।
"बेटा ...ऐसे शरारती बच्चों से दूर ही रहा करो।"
इतने में मम्मी भी बोल उठी।
"नही अंकल ...अगर उन्होंने मेरे लिए कुछ कहा होता तो मैं गुस्सा नही होता।
लेकिन उन्होंने मेरी दोस्त के लिए ऐसा कहा ।जो मुझसे सहन नही हो सका।"
नवीन के ये शब्द सुनकर विदुषी फूले नही समा रही थी।
विदुषी के पापा नवीन की प्रतिभा और कर्तव्यनिष्ठा से बहुत प्रभावित हुए।
"नवीन चलो जल्दी से नास्ता करो।
हम आपको हमारा गार्डन दिखाएंगे।"
विदुषी ने नवीन की ओर अपनी तिरछी निगाहें डालते हुए कहा।
"नवीन ....विदुषी हमारी इकलौती बेटी और बेटा दोनो है। हम इसे बहुत प्यार करते हैं। इसकी उम्र अभी 17 साल ही है । जैस जैसे इसकी उम्र बढ़ रही है हमारा कलेजा जला सा जाता है।
कुछ ही सालों में ये शादी लायक हो जाएगी।
और...."
विदुषी के पापा आगे बोल पाते कि -
"पापा आप क्यों ऐसी बाते करके हमें ओर खुद को तकलीफ देते हैं।
और रही हमारी बात तो हम आपको छोड़कर कहि नही जाएंगे.... ओके ।"
विदुषी ने अपने पापा के गले में अपनी बाहें डालते हुए कहा।
"अच्छा नवीन अब हम आपको घुमा लाते हैं"
विदुषी ने नवीन की ओर देखते हुए कहा।
गार्डन में-
"नवीन आप बाद में हमारे पापा से हमारा हाथ मांगना लेना।
ओर फिर हम प्यार में डूब जाएँगे।
हाँ... और फिर आप मुझे बेझिझक जान कहना..नो ऑब्जेक्शन।"
विदुषी ने नवीन को पीछे से बाहों में भर लिया और उसकी पीठ पर अपना सिर रखते हुए कहा।
"अच्छा ...अभी से आपने इतने सपने बुन रखे है।
मेरे सपनो की राजकुमारी जी।"विदुषी को पीछे से आगे लाते हुए नवीन ने कहा।
"शादी के बाद भी आप हमसे इसी तरह बेपनाह प्यार करना नवीन।क्यों कि हम आपके प्यार के बिना जिंदगी के कल्पना भी नही कर सकते हैं।"
विदुषी फिर से नवीन की बाहों में समाते हुए बोली।
"नवीन आप हमें कभी भी खुद से अलग मत करना ।क्यों कि हमारा आपसे अलग होना मतलब सांसो का का छीन जाना।"
विदुषी ऐसा कहते कहते भावुक हो गयी।
"ऐसी बातें अपनी जुबाँ पर फिर कभी मत लाना।
आप ऐसा कैसे सोच सकती हो कि मैंआपको खुद से अलग होने दूँगा।
अरे आप मेरी धड़कन हो यार और भला मैं कैसे जी सकता हूँ आपके बिना।"
नवीन ने विदुषी के आँसू पोंछते हुए माथे पर चूमा।
उस किस ने विदुषी को मानो एक अलग ही एहसास दिया हो और-
"अरे...नवीन हम आपको बताना हि भूल गए की परसो हमारा जन्मदिन है।" विदुषी ने अपने आपको संभालते हुए कहा
"और सुनिए विजय को भी लाना ओके"
विदुषी ने फिर से कहा।
"वाओ ...इट्स अ ग्रेट न्यूज़
आपने हमे पहले क्यों नही बताया?हमें ये सुनकर बहुत खुशी हुई है।
अच्छा तो हमारी जान को गिफ्ट में क्या चाहिए।"
नवीन ने ऐसे कहा मानो विदुषी पर अपना सब न्योछावर करना चाहता हो ।
"नवीन आप मिल गए इससे बड़ा गिफ्ट ओर क्या होगा हमारे लिए"
और हाँ ..हमने आपको सरप्राइज देने के लिए पहले नही बताया।"
विदुषी ने नवीन की अंगुलियों में अपनी अंगुलियों को फंसाते हुए कहा।
"ओके अब हम चलते हैं" विदुषी के ये शब्द सुनते ही दोनों अपने अपनी मंजिल की और चल पड़े।
क्रमशः.....
@Ravi jangid
Comments
Post a Comment