माँग का सिंदूर(4)
छुट्टी के बाद नवीन घर पहुंचा और अपने स्टडी रूम में चला गया ।
नवीन मन ही मन जनता था कि विदुषी का उत्तर आई लव यू टू होगा।
साढ़े चार बजते ही नवीन सज धजकर प्रेम नगर की ओर चल दिया।
वहाँ पहुचते ही नवीन की निगाहें विदुषी पर गयी तो वह मन्त्र मुग्ध हो गया।
वह उस सुंदर चेहरे को निहारता रहा।
यही हाल विदुषी का था। नवीन को देखते ही मानो धड़कने बढ़ने सी लग गयी हो।
"हाय नवीन...." विदुषी अपने चेहरे से काली काली जुल्फों को हटाते हुए बोली।
ह..ह..हाय..."नवीन ने हकलाते हुए कहा मानो विदुषी में डूब गया हो ।
"कैसे लग रहे हैं हम नवीन..." विदुषी ने शर्माते हुए स्वर में कहा।
"किताबों की जगह जुबान बस आपका ही नाम
रटती हैं...
कितना ही चाहूँ लेकिन आपके चेहरे से निगाहें नही हटती हैं....
यु आर लुकिंग मोस्ट ब्यूटीफुल डिअर"
नवीन ने विदुषी की झील सी आँखों मे डूबते हुए कहा
"हटिये....इतना भी झूठ मत बोलिये आपसे ज्यादा ख़ूबसूरत नही है हम ।"
विदुषी शर्माते हुए बोली।
"रियली यार...आप बहुत खूबसूरत हो।"नवीन ने कहा।
" ओके ये सब छोड़िये .. प्लीज नवीन आप ने उस दिन हमसे जो कहा था वही बोलिये ना।"विदुषी शर्माकर मुड़ गई।
ये सुनते ही नवीन कैसे पिछे रहने वाला था तुरन्त बोल उठा-
"आई लव यू"
"आई लव यू टू " विदुषी ने वापस नवीन कि तरफ घूमते हुए कहा।
ये सुनते ही नवीन फुले नही समाया और विदुषी को अपनी बाहों में उठा लिया।
"नवीन उतारिये हमे...कोई देख लेगा।"
विदुषी को ना चाहते हुए भी ये कहना पड़ा।
इतना कहते ही नवीन ने विदुषी को बाहों से मुक्त कर दिया जो वो चाहता नही था ।
"नवीन...आप कल भी आइयेगा।कल हम आपको अपने घर ले चलेंगे और अपने मम्मी पापा से मिलवाएँगे।" विदुषी ने मंद- मंद मुस्कान बिखेरते हुए कहा।
यह सुनते ही मानो नवीन को रोम -रोम खिल उठा।
"ओ रियली...आई एम सो हैप्पी।"नवीन ने खुशी से झूमते हुए कहा।
"ओके नवीन अब हम चलते हैं....
मम्मी घर पर वैट कर रही होंगी।
बाय...." विदुषी ने कहा।
"ओके बाय..." नवीन ने मुस्कुराकर कहा।
और दोनों अपने-अपने रास्ते चल पड़े।
इधर विजय भी विदुषी का दीवाना हो चुका था।
वह भी उसी के ख्यालो में डूबा रहता था।
"विदुषी मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ ।
मैं इजहार करना चाहता हूँ पर कर नही पाता हूँ
लेकिन एक दिन मैं अपने प्यार का इजहार जरूर करूंगा ।"
विजय आईने में खुद से ही बाते करने लगा।
अगले दिन स्कूल में-
स्कूल पहुंचते ही नवीन की आँखे विदुषी को तलाशने लगी।तभी नवीन की नज़र विदुषी पर गयी।
जैसे ही विदुषी ने नवीन को देखा खुद को रोक न सकी और दौड़ी चली आयी।
"कैसे हो नवीन...नींद तो आती है ना। या अभी भी उड़ी हुई है।" विदुषी मजाक के मूड में बोली।
नवीन भी तपाक से बोल पड़ा-
"आप मिल गए तो नींद तो आनी ही थी जान।"
"पागल हो क्या नवीन...
जान क्यों कहा?
कोई सुन लेगा तो क्या कहेगा ।" विदुषी ने आंखे दिखाते हुए कहा।
"तो क्या जानम कहूँ" नवीन अपनी हँसी ना रोक सका।
"आप भी ना नवीन... " विदुषी झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली।
तभी अचानक-
"क्या बाते चल रही है तुम दोनों में नवीन" विजय तनकर बोला।
"क.. क... कुछ नही भैया " नवीन घबराए स्वर में बोला।
"डरा दिया ना तुमको "विजय ताली मारते हुए बोला।
"हाँ विजय आपने तो डरा ही दिया था।" विदुषी ने भी घबराहट को मुस्कान में परिवर्तित करते हुए कहा।
तभी बैल लग जाती है और तीनो प्रेयर के लिए चल पड़ते हैं।
क्रमशः.....
@Ravi jangid
.
Comments
Post a Comment