जब मैं बाहरवीं में पढ़ता था
by-Ravi jangid
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जब मैं बाहरवीं में पढ़ता था...
उन दिनों किसी पे मरता था...
एक राजकुमारी के प्रेम में पागल
सारा एरिया हमसे जलता था...
उसकी यादों में ही होती थी सुबह...
उसकी यादों के सहारे दिन ढलता था...
मै उसे बेपनाह प्यार करता था...
जब मै बारहवीं में पढ़ता था...
मेरे सपनों में रोज आती थी...
मुझे हाल ए दिल बतलाती थी...
उसकी गैर हजारी में दिल जलता था...
जब में बाहरवीं में पढ़ता था...
मुझे देखकर वो नज़रे झुकाती थी...
लगता था परी आ गयी हो जब वो आती थी...
उसके और मेरे मिलन के सपने गढ़ता था...
जब में बारहवीं में पढ़ता था...
दोस्तों के बीच उसकी चर्चा चलती थी...
उसके नाम मात्र से मेरे दिल मे रोशनी जलती थी...
मै उसे दिल ए जिगर से प्यार करता था...
जब में बारहवीं में पढ़ता था...
उसके दिल मे मेरी, मेरे दिल मे उसकी तस्वीर...
मैं था उसका राँझा,वो थी मेरी हीर...
जितना दूर रहता उससे ,उतना ही प्रेम पलता था...
जब में बारहवीं में पढ़ता था...
हमेशा उसकी यादों में खोया...
न जाने कितनी रातों से नही सोया...
तड़पता था उसके लिए, रातभर आहें भरता था...
जब मैं बारहवीं में पढ़ता था....
Kya jordaar kavita hai
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