kavi mister ravi
अपना ही काम आए मुसीबत, गैर देखे तमाशा ।
खून के रिश्ते करके तारतार,गैर से रखत आशा ।।
गैर से रखत आशा, गैर अक्सर दे देते दगा ।
जहाँ मुँह फेर लेत गैर,वही काम आते सगा।।
कह कवि रवि भाई ,फिजूल में जमा करत हो भीड़ ।
तिनका तिनका अलग हो,कमजोर पड़ जात नीड ।।
by-Ravi jangid
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