दोस्तो ये कविता सत्य घटना पर आधारित है जो मेरे व मित्रों के साथ 2010 में घटित हुई थी । मेने उसी समय इसे लिखा था। मुझे नही पता की ये इस मंच के लायक है या नही प्लीज अपनी प्रतिक्रिया देना।
दिखने में मेरी ये कविता है यारों बहुत छोटी...
लेकिन दास्तान कहती है युवाओं की बहुत मोटी...
झूठ नही
ये है एक सच्ची घटना...
बहुत उलट पुलट कर देता है
किसी शब्द से एक अक्षर का हटना...
सुहाना था मौसम
हो रही थी बारिश की बौछार...
निकले हम दोस्त
चिड़ियाघर घूमने को चार...
झुंड था पक्षियों का,
था मगरमच्छो का ढेर...
कोबरा निकला बिल से,
दहाड़ रहा था शेर...
दहाड़ रहा था शेर,
लगा जीतेगा यह लंका...
तभी हमारे साथी
प्रदीप को आयी लघुशंका...
उसकी ऐसी दशा देख
हम रुक नही पाए...
तुरन्त वहाँ से
शौचालय की ओर आये...
जाते ही वहाँ
हम सब के चेहरे खिल गए...
हँसने हँसाने हेतु
कुछ पल मिल गए...
देखा हमने
महिला- पुरुष शौचालय थे सटाकर...
अजब कारनामा कर दिया
किसी ने महिलाए के ' म ' को हटाकर...
पढ़ा जब ऐसा
दोस्त चारो हम मुस्कुराये...
क्योंकि शौचालयों पर
अब लिखा था 'पुरुष - हिलाएं ' ...
@Ravi jangid
9694943129

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