"अरमानों का भरिता "हास्य कविता

अरमानों का भरिता- रवि जाँगिड़【kavi mr Ravi】


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एक खूबसूरत सेकेट्री जिसने पहन रखी थी कानो में सोने की बालियाँ....

एक दिन बॉस के कमरे से बाहर आई वो देते हुए गालियाँ...

उसके साथियों ने पूछा किस बात पे इतना भड़क रही हो....
आज क्यों बिजलियों   सी तुम
कड़क रही हो...

बॉस मुझ से बोला क्या तुम शाम को फ्री हो dear प्रिया....
साथी तुरन्त बोले तो फिर क्या रही तुम्हारी प्रतिक्रिया....

हाँ फ्री हूँ मैं मेने ऐसा कहा
बॉस से....
मंद ही मंद मुस्काई मैं जैसे कचोरी मिली हो सॉस से....
फिर क्या बॉस ने मेरा हर अरमान बर्फ सा जमा दिया.....
250 पेज का असाइन मेन्ट टाइपिंग के लिए थमा दिया....

फिर क्या सूख गई मेरे अरमानो की सरिता....
बॉस ने एक पल में बना दिया मेरे अरमानो का भरिता...
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