माँ का कर्ज



हो सकता है तू करले चाहे सब कुछ,
 पर एक काम कभी नही कर पायेगा।
 तू चुका लेगा सब कुछ ,
पर तुझसे माँ का कर्ज कभी नही चुकाया जाएगा ।।

नही चुका सकता तू उस माँ का कर्ज,
चाहे तू कितना ही माँ का पुजारी है।
जिसने तुझे सूखे में सुलाकर ,
खुद गीले बिस्तर में रात गुजारी है।।

जिस माँ ने पूरी- पूरी रात जागकर
अपनी नींदों को खोया है।
जिसको देख नाक सिकोड़ते हो तुम
पोटी से सनी उस लंगोटी को भी हँसकर धोया है।।

तुझे जन्म देने के लिए जिसने
 किया अपनी सुंदरता का खात्मा।
उसके पास तो बस देह थी अपनी
तूही थी  उस देह की आत्मा।।

तू मांगता रात को बार बार पानी
तो वो तेरे लिए पानी लाती थी।
तू बार बार हटा देता कम्बल
वो बार बार तुझे उढाती थी।।

जब तू रोया करता तो
जागकर रातों को तुझे दूध पिलाया है।
कभी कभी तो पूरी रात जागकर
तुझे अपनी गोद में हिलाया है।।

माँ के उपकार हैं इतने
 ये रविअपनी  जुबाँ से बोल नही पायेगा।
कमा ले कितना ही खजाना
माँ के उपकारों को दौलत से तौल नही पायेगा।।

माँ के बिना तो आँख होने पर भी
 हर जगह काला ही काला है।
और जब माँ हो जीवन में
तो बिन आँख भी उजाला है।।


By -ravi jangid 9694943129

Dosto apko meri poem kaisi lagi plz apne vichar
Comment box m jaroor likhe .
Thank you




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