【कंजूस देवी लाल】हास्य कविता

एक थे महा कंजूस मिस्टर देवी लाल...
पैसों के खातिर नही कटाते थे सालों तक बाल...

उनके दाँतो को कभी नही आई मंजन रास...
2 km तक आती उसके मुँह से बास....

बालों में जूँ इतनी मोटी जैसे चींटे....
नहाने के नाम पर लगाते बदन पर सिर्फ पानी के छींटे...

एक दिन  पीट रहा था अपने लाल को देवी लाल....
ये देखकर उसे बचाने आये पड़ोसी इकबाल....

बच्चे को अपनी बाहों में भरकर बोले इकबाल...
इस मासूम को क्यों मार रहे हो तुम देवी लाल...

खा खा कर हो रहा है ये कम्भख्त पप्पल.....
मेने कहा था एक एक सीढी छोड़ के चढ़ने को
ताकि कम घिसे इसकी चप्पल....

कहने की बावजूद ये दो दो सीढ़ी छोड़ के चढ़ा....
फट गया पजामा इसका ओर हो गया छेद बडा....

ये सुनते ही इकबाल जी के होंश वहीं हो गए ढेर....
पिता कंजूसी में सेर तो बेटा निकल सवा सेर....

@Ravi jangid(सर्वाधिकार सुरक्षित)

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