शराबी हास्य कविता



बात है मेरे गांव की नाम था उसका सीकर चला जा रहा था मैं कहीं शराब पीकर।।

शराब पीकर, देखने वाला ही दशा जाने।
गिर जाऊं अगर तो हो जाऊं चारो चित खाने।।

नशे में धुत्त ऐसा, किसी को ना पहचान पाऊँ फेस से।
तभी सीधा जाकर टकराया एक काली भैंस से।।

टकराकर भैस से सीधा जमीन पर पड़ा।
कैसे करे बयाँ बमुश्किल हो पाया खड़ा।।

सब कुछ छोड़कर।
मैं बोला हाथ जोडकर।।

नही देख पाया आपका चेहरा साफ।
गलती हो गई बहनजी कीजिये माफ।।

कीजिये माफ, तभी आवाज कहीं से आई।
ये बहनजी नही , भैंस है मेरे भाई।।

सुनकर ऐसा लगा मुझको झटका।
आंखे बचाकर तुरन्त वहां से खिसका।।

मुख से बोलता गया बल्ले- बल्ले ।
बार -बार खा रहा था नशें में टल्ले।।

नशे में टल्ले ,तभी सामने से आ रही थी एक नारी।
दिखने में मोटी -ढाटी वजन था उसका भारी।।

देख ले गर उसकी कोई काया, तो उसकी सुध जाए।
गिर जाए गर जमीं पर तो गढ्डा खुद जाए।।

मोटी-मोटी आंखे उसकी आँखों में काजल डाले।
भारी -भारी कमरिया वो लचकाती चाले।।

किस्मत ओर मेरे बीच ऐसा संग्राम छिड़ा।
सीधा जाकर स्त्री रूपी पशु से भिड़ा।।

लगी टक्कर ,मानो भूकम्प आया ।
खुद को मैने सड़क पर पड़ा पाया।।

बोला मैं  ''ये लोग गम भरी जिंदगी में एक गम ओर जोड़ देते हैं।
              सालें अपनी भैंसो को रोड पर खुला छोड़ देते हैं''
By-kavi Mr Ravi(Ravi jangid)
9694943129

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